Monday 4 August 2014

मजदूरी से स्थाई आजीविका


डा. रवीन्द्र पस्तोर

मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार मांगने का कानूनी हक प्रदान किया गया है। लेकिन केवल मजदूरी कर गरीबी दूर नही हो सकती है। इसके लिए स्थाई रोजगार के अवसर निर्मित करने की आवश्यकता है। जो अमला मनरेगा को लागू करने का काम कर रहा है उनकी समझ स्पष्ट होना आवश्यक है। सबसे पहले हम यह समझे की आजीविका क्या है, जब हम अपनी सेवाओं या वस्तुओं को बेच कर प्रतिफल प्राप्त करते है तो उस प्रक्रिया को आजीविका का साधन कहते है। सेवाओं या वस्तुओं की बेचने की प्रक्रिया बाजार में पूर्ण की जाती है। अतः बाजार को समझे बिना स्थाई आजीविका के साधन का निर्माण नही किया जा सकता है। हमारे देष में बाजार को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-ग्रामीण बाजार एवं षहरी बाजार। ग्रामीण बाजार में वस्तूओं एवं सेवाओं की मांग बहुत कम मात्रा में होती है तथा कीमत भी अपेक्षाकृत कम होती है। जबकि हरी बाजार की मांग की मात्रा बहुत अधिक, अच्छी गुणवत्रा तथा लगातार एक जैसी गुणवत्रा की अपेक्षाकृत अधिक कीमत में होती है। लेकिन ग्रामीणों के पास उतनी अधिक मात्रा में सामग्री न होने के कारण बह सीधे हरी बाजार में नही बेच पाता है। इसलिए वह बिक्री का काम बिचौलिए के माध्यम से करते है जिसके कारण ग्रामीणों को उनकी वस्तुओं व सेवाओं का पूरा मूल्य नही मिल पाता तथा मूल्य का अधिकांष भाग बिचौलिओं के पास चला जाता है। इस प्रक्रिया में जहां एक ओर हरी उपभोगता को अधिक मूल्य देना पड़ रहा है वही दूसरी ओर ग्रामीण उत्पादकों को उचित दाम न मिल पाने के कारण बह घाटा उठाते है। यह प्रक्रिया से एक दुषचक्र का जन्म हो गया है। इस दुषचक्र को तोड़ने के लिए मनरेगा के तहत काम किया जा सकता है।
मनरेगा के तहत दो तरह के ग्रामीण परिवारों के द्वारा पंजियन करवाया गया है-एक भूमीधारी परिवार तथा दूसरे भूमहीन परिवार। इन परिवारों के गतिविधि आधारित समूह बना कर इनके उत्पादन की प्रक्रिया एक जैसी करने की आवश्यता है। जिससे इनके द्वारा एक जैसी गुणवत्रा तथा बड़ी मात्रा में वस्तुओं तथा सेवाओं की पूर्ति हरी बाजारों में कर विचौलिओं के बिना सीधें उपभोगताओं या प्रसंस्करणकर्ताओं की मांग की पूर्ति की जा सकती है। इस व्यवस्था को कायम करने के लिए प्रदे में गतिविधि आधारित समूह बनाने की प्रक्रिया प्रारभ्म की गई है। प्रत्येक समूह में सेवा प्रदाता की सेवाऐं उपलब्ध कराने के लिए मेट की नियक्ति की गई है। मेट समूह को प्रारम्भ से ले कर अंत तक सेवाऐं उपलब्ध करवाएगे तथा बदले में उन्हें मनरेगा से अर्द्धकुल मजदूर की मजदूरी तथा सदस्यों से सेवाषुल्क प्रदाय किया जावेगा। मेट को समूह के सदस्य के परिवार से होना चहिऐं जो कक्षा आठ तक पढालिखा होना चाहिए तथा समूह द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए। इस व्यवस्था से लगभग दो लाख से अधिक ग्रामीण युवक या युवतियों को रोजगार के अवसर मिल रहे है।
एकजैसे तरीके से वस्तुओं या सेवाऐं प्रदान करने के लिए भूमिधरकों को वस्तुओं के उत्पादन तथा भूमिहीनों को सेवाओं को प्रदान करने के लिए आवश्यक अद्योसंरचना का निर्माण तथा प्रक्षिशण देने की आवश्यकता होगी। यह सभी कार्य मनरेगा के तहत नही किये जा सकते है, इसके लिए आवश्यक है कि जिलें में संचालित विभिन्न विभागों की योजनाओं के साथ समन्वय किये जाने की आवश्यकता होगी। ग्राम में किस गतिविधि का संचालन किया जाना है इस का निर्धारण इस आधार पर किया जाना चहिऐं कि वर्तमान में ग्रामीण सर्वाधिक मात्रा में किस काम से आय प्राप्त करते है। उसी गतिविधि के गुणमूल्य वृद्धि के लिए काम करने की आवश्यकता होगी। गतिविधि का निर्धारण करने के पष्चात् यह सर्वे किया जावे के उत्पादन आधार तैयार करने तथा विपणन की व्यवस्था करने के लिए किस तरह की अद्योसंरचना की आवश्यकता है। इसके लिए ग्राम में भ्रमण कर ग्राम स्तर तथा परिवार स्तर पर क्या-क्या उपलब्ध है तथा कौन-कौन कमियां है उन परिसंपतियों के निर्माण का काम मनरेगा के ग्रामीण बजट में उपलब्ध राषि से किया जा सकता है। 
एक जैसे तरीके से उत्पादन करने के लिए आवश्यक है कि समूह के सदस्यों के कौशल को बड़ाया जावे। इसके लिए यह निर्धारित किया जावे कि बाजार की मांग के अनुरूप उत्तम गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए किस स्तर के कौषल की आवश्यकता है। वर्तमान में सदस्यों का कौषल स्तर किस स्तर का है तथा कितना अंतराल है। इस अंतराल को पूरा करने के लिए कितने दिन का प्रक्षिषण देने की आवश्यकता है। प्रषिक्षण के लिए प्रषिक्षण पाठ्क्रम तैयार करने की काम विषय विषेषज्ञ के द्धारा किया जावे। जिले में उपलब्ध विभिन्न विभागों के प्रषिक्षण केन्द्रों में किया जाना चाहिऐं। सबसे पहले मेटों का प्रषिक्षण करवाना चाहिऐं तथा मेट अपने समूह के सदस्यों का प्रषिक्षण करेगे। प्रषिक्षण की व्यवस्था जितनी अच्छी होगी उत्पादन की गुणवत्ता उतने ही अच्छी होगी। प्रषिक्षण के व्यय की व्यवस्था जिलें में संचालित विभिन्न स्वराजगार की योजनाओं, कृषि तथा उद्यानिकी विभाग के बजट का उपयोग किया जाना चाहिऐं।
इस व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप देने के लिए इन गतिविधि समूहों को प्रडूसर कम्पनी के तहत पंजिकृत करवाया जावे। यह संस्था अपने सदस्यों को बाजार, वित तथा प्रषिक्षण की व्यवस्था करेगी। इस तरह की संस्थाऐं वनाने के लिए आजीविका मिषन तथा लधु कृषक कृषि व्यापार संध द्वारा प्रदेश में बजट उपलब्ध करवाया जा रहा है। वर्तमान में सौ से अधिक इस तरह की संस्थाओं का गठन कर संचालित किया जा रहा है। प्रारम्भ में मरनेगा से इन संस्थाओं के षेयर धारक सदस्यों के धर, खेत तथा खलियानों तथा संस्था के स्तर में किन कामों की आवश्यकता है चिन्हित कर ग्राम के सेल्फ आंफ प्रोजेक्ट में जोड़े जा कर काम प्ररम्भ किये जाना चहिऐं। इसे हम मजदूरों को स्थाई आजीविका के साधन उपलब्ध करवा सकते है। अनेक जिलों में इस दिषा में काम प्रारम्भ कर दिये गये ह, इन्हें गति देने की आवश्यकता है।  
       

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